इमाम हुसैन कौन थे? जानिए हज़रत इमाम हुसैन की पूरी कहानी (Hazrat Imam Hussain Story in Hindi)
इमाम हुसैन की मौत का सबसे मशहूर और दुखद घटना, करबला की लड़ाई है, जो 10 मुहर्रम (आशुरा) को घटी थी। यह घटना इस्लामिक इतिहास में महत्वपूर्ण है और शीया मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। करबला की लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके साथी कई सवारों के साथ मुआविया के प्रतापी बेटे यजीद के सैन्य के खिलाफ खड़े हुए थे। इमाम हुसैन का मुख्य उद्देश्य इस्लामिक न्याय और इस्लाम के सिद्धांतों की रक्षा करना था। उन्होंने यह दर्शाने के लिए करबला जाने का निर्णय लिया कि उनका विश्वास और आदर्श ईमानदारी और सच्चाई की राह में है।
नमस्कार हिंदी कहानी उस शख्सियत की जिसके लिए मुसलमान मानते हैं कि उसने अपना सर काट कर इस्लाम को बचा लिया इनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने दीन ए इस्लाम को बचाने के लिए एक से बढ़कर एक कुर्बानी दी इनमें उनके छह माह की बेटी की शहादत भी शामिल है और 18 साल के बेटे की भी नाम है हुसैन हुसैन के लिए मोहम्मद साहब ने कहा था कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से लेकिन फिर भी यजीद नाम के शख्स ने उनको कत्ल करा दिया कहा जाता है
कि यह जीत चाहता था कि हर बात उसकी मानी जाए सुन्नी मुसलमान और शिया मुस्लिम के पहले इमाम हजरत अली के दूसरे बेटे हैं हुसैन पहले बेटी का नाम हसन है पैगंबर मोहम्मद साहब की बेटी फातिमा हुसैन की मां है मोहम्मद साहब हुसैन के नाना हुसैन को शिया मुस्लिम अपना तीसरा इमाम हजरत अली और दूसरे दिन के बाद आते हैं हुसैन पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा था कि एक ही है.
यह टेबल इमाम हुसैन के बारे में मुख्य जानकारी प्रदान करती है।
प्रमुख जानकारी | |
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जन्म तिथि | 3 शव्वाल, 4 ईस्लामी सन |
(8 जनवरी 626 ईसा पूर्व) | |
मृत्यु तिथि | 10 मुहर्रम, 61 ईस्लामी सन |
(10 अक्टूबर 680 ईसा पूर्व) | |
पिता | इमाम अली इब्न अबी तालिब |
माता | बीबी फातिमा ज़हरा |
बच्चे | इमाम अली ज़ैनुल आबिदीन, |
सख़ी बीबी, इमाम मोहम्मद बाकिर, | |
इमाम ज़ैद बिन अली | |
जन्म स्थान | मेक्का, सऊदी अरब |
महत्वपूर्ण घटना | करबला की लड़ाई |
उद्देश्य | इस्लाम के मूल आदर्शों और |
न्याय की रक्षा करना | |
प्रमुख उपलब्धियाँ | इमाम हुसैन को इस्लामी समुदाय |
में मासूम और आदरणीय माना जाता | |
संदेश | न्याय, सच्चाई और ईमानदारी की |
महत्वपूर्णता को प्रमोट करना |
और वही के बाद के काबिल है उन्होंने इस्लाम फैलाना शुरू किया तब लगभग सभी कवियों ने मोहम्मद साहब की बात को मानकर इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया था मोहम्मद साहब के साथ जुड़े कबीलों की ताकत देखकर उस वक्त उनके दुश्मन भी उनसे मिले लेकिन उनसे दुश्मन ही दुश्मनी मोहम्मद दुनिया से चले जाने के बाद सामने आने लगी उनकी बेटी फातिमा जहरा पर हुआ उनके घर पर हमला किया गया
तो घर का दरवाजा टूट कर गिरा और उसके जख्म कैसे हुए 28 अगस्त दुनिया से रुखसत हो गए 7 साल के थे मोहम्मद साहब के दामाद और दुश्मनों ने कत्ल कर दिया रमजान का महीना था 19 नाम के शख्स ने तलवार से उस वक्त हमला किया जब नमाज पढ़ रहे थे तभी हुई बताई जाती है ऐसा हुआ कि उनका इलाज ही नहीं हो
सका और वह भी दुनिया से रुखसत हो गए मुस्लिम के बाद उनके बेटे को भी उसे दुश्मनी में जो मोहम्मद साहब के दौर से थी मार दिया गया जहर देकर शहीद कर दिया गया बता देता है कि 4 मई 680 इमाम हुसैन ने अपना घर मदीना छोड़ दिया मक्का जाने के लिए करना चाहते थे तब उन्हें पता चला कि दुश्मनों के भेष में उनको कर सकते हैं नहीं चाहते थे कि का जैसी पवित्र खून बहे चले गए हुए थे कि किसी को पता ना चले कि अगर किया जाए तो देखें और वह कौन सही कौन गलत है जंगल में पहुंचे करबला करबला इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर दूर है और वही जगह है
इमाम हुसैन की कब्र है या मुस्लिम ही नहीं बाकी मुसलमान भी आते हैं मुसलमान थे उनके काफिले थे और मोहर्रम के लिए बंद कर दिया था और वह हर हाल में उनसे अपनी स्वाधीनता स्वीकार करना चाहता था हर किसी भी तरह की बात मानने को राजी नहीं थे इमाम हुसैन रोशनी बुझा दी और अपने सभी साथियों से कहा कि मैं किसी के साथियों को अपने साथियों से ज्यादा वफादार और बेहतर नहीं समझता कल के दिन हमारा दुश्मनों से मुकाबला है उधर लाखों की तादात वाली फौज है
तलवार है और सभी हथियार हैं उनके मुकाबले बहुत ही मुश्किल है सबको खुशी देता हूं यहां से चले जाओ मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं होगी अंधेरा इसलिए कर दिया है कि अगर तुम्हारी हिम्मत ना हो यह लोग सिर्फ मेरे खून के प्यासे हैं उसे कुछ नहीं कहेगी जो मेरा साथ छोड़कर जाना चाहेगा कुछ देर बाद रोशनी कर दी गई लेकिन एक भी साथी इमाम हुसैन का
जो मेरा साथ छोड़कर जाना चाहेगा कुछ देर बाद रोशनी फिर से कर दी गई लेकिन एक भी साथी इमाम हुसैन का साथ छोड़कर नहीं गया इसके बाद दिन छपने से पहले तक हुसैन की तरफ से 72 शहीद हो गए इन 72 में हुसैन के अलावा उनके छह माह के बेटे अली असगर 18 साल के अली अकबर और 7 साल के उनके भतीजे का सिम भी शामिल थे इनके अलावा शहीद होने वालों में उनके दोस्त और रिश्तेदार भी शामिल रहे हुसैन का मकसद था खुद मिट जाए लेकिन वह इस्लाम जनाब मोहम्मद साहब लेकर आए हो जाने के बाद यह जिनेंद्र नाम के शख्स से हुसैन की गर्दन को भी कटवा दिया बताया जाता है कि जिस खंजर से इमाम हुसैन के सर को जिस्म से जुदा किया गया था
करबला में इमाम हुसैन और उनके साथी ने बड़ी कठिनाइयों का सामना किया, जैसे कि पानी की कमी और भूख। वाकई, उनके साथीगण ने बड़े बलिदान की दृढ़ता और आत्म-समर्पण के साथ यह सिद्ध किया कि उन्होंने अपने आदर्शों और मानवाधिकारों के लिए अपने जीवन की आहुति दी है।
10 मुहर्रम को, जिसे आशुरा कहा जाता है, उनके साथीगण और उनका परिवार कारबला में यजीद के सैन्य के खिलाफ लड़ते रहे। अंत में, उन्होंने सभी जीवन की आहुति देने का निर्णय लिया और उन्होंने अपने आदर्शों की उपासना के लिए अपनी मृत्यु को स्वीकार किया।
इस घटना में इमाम हुसैन और उनके साथीगण की मृत्यु का मकसद उनके विश्वासों और मानवाधिकारों की रक्षा था, और यह घटना आज भी इस्लामी इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।